makar sankranti ke rog nivaran upay||मकर संक्रांति पर विशेष रोग निवारण प्रयोग उपाय
क्या कारन है की मनुष्य उन्नति के सिखर पर पहुंच जाता है और एक व्यक्ति पुरे जीवन सामान्य ही बना रहता है | दोनों के भेद शरीर के भीतर जाग्रत सूर्य तत्त्व का है | नाभि चक्र सूर्य चक्र का उदगम स्थल है | और यह अचेतन मन के संस्कार तथा चेतना का प्रधान केंद्र है शक्ति का स्ट्रीट बिंदु से है सादारण मनुष्यो में यह तत्त्व सुप्त होता है न तो इसकी शक्ति का सामान्य व्यक्ति को ज्ञान होता है और न ही वह इसका लाभ उठा पता है इस तत्त्व को अर्थार्त भीतर मणिपुर में स्थित सूर्य चक्र को जागृत करने के लिए बहार के सूर्य तत्व की साधना आवशयक है बहार का सूर्य अनंत शक्ति का स्त्रोत है और इसको जब भीतर के सूर्य चक्र से जोड़ दिया जाता है तब साधारण मनुष्य में भी अनन्त मानसिक शक्ति का अधिकारी बन जाता है और जब यह तत्व जागृत हो जाता है तो रोग बढ़ाये उस मनुष्य के पास आ ही नहीं सकती है | बहार का सूर्य तो साल के ३६५ दिन जागृत है लेकिन इसके सयोग के भीतर के सूर्य तत्त्व को कुछ विशेष मुहूरत में तत्काल जागृत किया जा सकता है | और इसके लिए मकर संक्राति से बढ़कर कोई सिद्ध मुरुत नहीं है तो क्यों न आप भी करे इस मकर संक्रांति पर रोग निवारण के लिए सूर्य शांति का विशेष उपाय शास्त्रों में वर्णित है की शरीर के हर अंग का करक कोई न कोई गृह है उसी तरह हर गृह कमजोर स्थिति में उससे सबंधित रोग भी देते है makar sankranti ke rog nivaran upay कुंडली में सूर्य को आत्मा नेत्र कुष्ट रोग उदर रोग सफ़ेद दाग ह्रदय रोग आदि का करक करक माना गया है | सूर्य ग्रह दुसित होने पर व्यक्ति को इनसे संभंधित कोई न कोई रोग अवस्य देता है यदि आप भी उपयुक्त किसी रोग से ग्रस्त है तो यह साधना आपको रोग मुक्ति में निश्चित ही सहायक होगी |
मकर संक्राति साधना विधि विधान
सामग्री पाव मीटर लाल कपडा सवा किलो गेहू स्वर्ण पालिश सूर्य यंत्र माणिक्य जड़ित सूर्य प्रतिमा एव सूर्य का लाकेट (चांदी ) सिंदूरी माला चांदी में जड़ित छ मुखी रुद्राक्ष तिल के बने लडडू आदि का प्रसाद |
१ मकर संक्रांति को सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक साधना संपन्न कर सकते है साधना से पूर्व स्नान आदि कर ले
२ स्वच्छ एव शुद्ध लाल कपडे वस्त्र धारण कर ले सम्भव हो तो लाल धोती ले और ऊपर लाल दुपट्टा ओढ़ ले कुरता पायजामा सकते है |
३ अब किसी शांत कमरे में पूजा स्थान पर या एकांत स्थान पर किसी मंदिर के प्रांगण में नदी तलाव के तट पर यह प्रयोग संपन्न कर सकते है |
४ पूर्व दिशा की और मुख करके बैठे |
५ बैठने के लिए लाल उन् का आसन या कुश के बने आसन का उपयोग करे |
६ अपने सामने बाजोट (लकड़ी की चौकी पटटा आदि ) पर लाल कपडा बीझा दे
७ अब इस बाजोट पर सूर्य यन्त्र स्थापित करे यदि सूर्य का चित्र या प्रतिमा है तो स्थापित कर सकते है |
८ अब इस बाजोट पर थाली रखे इस थाली में चन्दन से अष्टदल कमल बनाये अष्टदल कमल का अर्थ है पहले पूर्व से पश्चिम तक एक रेखा बनाये अब उत्तर से दक्षिण तक एक रेखा बनाये अब ईशान कोण से (पूर्व उत्तर )नेर्त्रय कोण (दाक्षिन पश्चिम ) के मध्य एक रेखा बनाये अब वायव्य कोण (उत्तर पश्चिम )से लेकर आग्नेय कोण (पूर्व दक्षिण )तक एक रेखा बनाये इस प्रकार एक अंग्रेजी के प्लस का नीसाण और उसके ऊपर अंग्रेजी के एक्स का निशान जैसा बन जायेगा अब इनके सिरों को गोलाई में मिला दे इस प्रकार आपका अष्टदल कमल तैयार हो जायगा |
९ थाली में चन्दन से अष्टदल कमल बनाकर उस पर लाल पुष्प की पंखुडिया का आसान बनाये |
१० लाल पंखुड़ियों के आसन पर माणिक्य जड़ित सूर्य प्रतिमा एव सूर्य यंत्र का लाकेट स्थापित कर दे |
११ थाली में गेहू की ढेरी कर चाँदी में जड़ित छः मुखी रूद्राक्छ स्थापित करे साथ ही सूर्य यंत्र स्थापित करे |
१२ इसके पश्चात अपने दाहिने हाथ में जल अक्षत कुमकुम पुष्प आदि लेकर संकल्प ले (संकल्प में व्यक्ति अपना नाम पिता का नाम गोत्र स्थान आदि का नाम ले व्ही विवाहित स्त्री या पिता के नाम की जगह पीटीआई का नाम ले तथा ससुराल का गोत्र उच्चारण करे ) तथा जिस इक्षापूर्ति के लिए आप यह साधना सम्पन कर रहे है उसका उच्चारण कर पूर्ण होने की प्राथना करे और जल को जमीं पर छोड़ दे तथा हाथ जोड़कर गृह राज सूर्यदेव का ध्यान करे
१३ अब आप एक पात्र में गंगा जल मिश्रित जल लेकर उसमे चन्दन और गुलाब की पंखुडिया डाल दे अब आप एक पुष्प की सहायता से इन तीनो सामग्रियों पर जल की वर्षा करते रहे और निरन्तर निम्न मंत्र का जप करते रहे जप करते समय मध्य में आप उठे नहीं |
!!मंत्र - ॐ ह्रां हीं हौं सः सूर्याय नमः !!
१४ अब अभिशेख के पश्चात इन दिव्या सामग्रियों को शुद्ध जल से धो ले पोछ कर पहले वाली थाली में स्थापित करे |
अब इस सामग्री पर कुमकुम केशर चन्दन का तिलक करे पुष्प चढ़ये और संछिप्त पूजन करे पुष्प लाल रंग का प्रयोग करे |
१५ सिंदूरी माला एक माला जप करे -
!!ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ आकृष्णेन रजसा
वर्तमानो निवेशयन्नमृतंत्र्त्यव्व । हिरण्ययेन सविता रथेना
देवोयाति भुवनानि पश्यन् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः ह्रौं हीं हां
ॐ सूर्याय नमः !!
१६ जप की समाप्ति पर ग्रहराज सूर्यदेव से पुनः प्राथना करे की वे आपकी अभिलाषा को पूर्ण करते हुहे आपको रोग ककष्टों से मुक्ति प्रदान करे इसके पश्चात तिल के लट्टू रेवड़ी या गजक का प्रसाद बात दे और स्वय भी खाये |
१७ सुर्य यूनता आप अपने पूजा स्थान पर लाल वस्त्र का आसान बिछाकर स्थापित कर दे नित्य संभव हो तो सामान्य पूजन अर्थार्त यंत्र को धो पोछ कर कुमकुम का तिलक करे चावल अर्पित करे पुष्प अर्पित करे धुप दिप करके गुड़ का प्रसाद अर्पित करे और नवग्रह शांति का निम्न मंत्र का कम से कम २१ बार अवस्य जप करे इससे आपको आपके भविस्य में भी ग्रह दोष से सभ्न्धित संकट शांत होंगे |
!!ॐ ब्रह्मामुरारि त्रिपुरान्तकारी
भानुः राशि भूमि सुतो बुधश्च ।
गुरुश्च शुक्रः शनि राहु केतवः
सर्वेग्रहाः शान्ति कराः भवन्तु !!
१८ रोगी व्यक्ति को स्वय चांदी का माणिक्य जड़ित सूर्य प्रतिमा एव सूर्य यंत्र का लाकेट पहनाये काळा या लाल धागे में अथवा सोने चंडी की चैन में पहने |
१९ चांदी में जड़ित छः मुखी रूद्राक्छ को आप दये बाजु में बांध सकते है अथवा गले म भी पहन सकते है |
२० यह एक ऐसा उपाय है जो वर्ष में मात्रा एक बार मकर संक्राति के पुण्य काल में किया जा सकता है और इस अवसर पर किया गया प्रयोग कई गुना फल प्रदान करता है |
२१ बाकि समस्त पूजन सामग्री को किसी पेड़ पौधे की ओट में विसर्जित कर दे |
२२ पूजन धारण विसर्जन आदि किर्याकलाप के पश्चात किसी कोढ़ी को कुछ खाद्यय सामग्री दान दे और मन ही मन कामना को दोहराहये |
चेतावनी- यह लेख केवल शोध कार्य के लिए है इस लेख से होने वाले परिणाम के लिए आप स्वय उत्तरदायी होंगे न की anirudhapandit.in